Thursday, 7 August 2025

AlliesFinServe #StockMarket #Bharat Telegram.me/AlliesFin's Post

ट्रंप के ट्रेड वॉर के पीछे की असली कहानी

दुनिया में अमेरिका की घटती हिस्सेदारी और असर

कभी अमेरिका के पास वैश्विक अर्थव्यवस्था (PPP के आधार पर) का लगभग 25% हिस्सा था।

2025 में यह घटकर सिर्फ़ 15% रह गया है।

यह सिर्फ़ एक आँकड़ा नहीं है।
यह एक मनोवैज्ञानिक भूकंप है।

कभी जो देश आत्मविश्वास से भरा मुक्त व्यापार का वास्तुकार था,
वहीं आज अपनी आर्थिक सीमाओं की रक्षा करने वाला असुरक्षित रक्षक बन गया है।

- यही अमेरिका था जिसने GATT और WTO बनाए।
- यही अमेरिका था जो कहता था: “टैरिफ़ खराब हैं, बाज़ार को तय करने दो।”
- यही अमेरिका था जो दूसरों को कोटा और सब्सिडी पर पाठ पढ़ाता था।

और अब ?

वही अमेरिका:
- उन्हीं व्यापार समझौतों को तोड़ रहा है जिन्हें उसने बनाया था।
- दोस्तों और दुश्मनों पर एक समान टैरिफ़ लगा रहा है।
- उन्हीं घाटों के लिए दूसरों को दोषी ठहरा रहा है जिन्हें वह कभी महत्वहीन बताता था।

यू-टर्न क्यों आया ?

क्योंकि जब ताक़त घटती है, विश्वास भी बदल जाता है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का अमेरिका आत्मविश्वासी था।
वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा का स्वागत करता था, क्योंकि वह हमेशा जीतता था।

लेकिन आज का अमेरिका अलग है:
- वह उभरती हुई चीन को देखता है, मजबूत होती भारत को देखता है, बहुध्रुवीय विकास को देखता है।
- और वह अपने को असुरक्षित महसूस करता है।
- यही असुरक्षा दोषारोपण को जन्म देती है।

यहीं आते हैं ट्रंप।

ट्रंप कारण नहीं हैं।
वे एक लक्षण हैं।
(ख़ुद उन्होंने कहा कि “अमेरिका अब महान नहीं रहा।”)
Make America Great Again

उन्होंने वह कहने की हिम्मत दिखाई जो अमेरिका स्वीकार नहीं करना चाहता था:

“हम अब नंबर वन नहीं हैं, और इसकी गलती किसी और की है।”

इसीलिए:
- वे टैरिफ़ लगाना चाहते हैं।
- वे WTO को अप्रासंगिक बताते हैं।
- वे NATO, वैश्विक गठबंधनों, यहाँ तक कि डॉलर की सर्वोच्चता पर भी सवाल उठाते हैं।

यह सिर्फ़ ट्रंप की बात नहीं है।
यह अमेरिका की पहचान के संकट की कहानी है।

आर्थिक दबदबे में गिरावट ने गहरे मनोवैज्ञानिक बदलाव को जन्म दिया है:

आत्मविश्वास से नियंत्रण तक।
नेतृत्व से संरक्षणवाद तक।
वैश्वाद से कबीलावाद तक।

जब महाशक्तियाँ सिकुड़ती हैं, वे चुपचाप नहीं जातीं।
वे तिलमिलाती हैं।
नियम बदल देती हैं।
दुनिया को उसी खेल के लिए दोष देती हैं, जिसे उन्होंने कभी सिखाया था।

अंकड़ों को ध्यान से देखिए।
वे नेताओं से भी ज़्यादा सच्चाई बोलते हैं।

Watch the numbers.

इस चार्ट को देखिए जो साथ में लगा है।

They speak louder than the politicians.
By: via AlliesFinServe #StockMarket #Bharat Telegram.me/AlliesFin

AlliesFinServe #StockMarket #Bharat Telegram.me/AlliesFin's Post

*News Headlines from Business News Agencies :* *Business Standard :* Indian leather exports to fall 10-12% in FY26 amid high US tariff: ...